पंचतंत्र की कहानियां Panchatantra ki Kahaniyan

पंचतंत्र की कहानियां Panchatantra ki Kahaniyan

आज से लगभग २००० साल पहले भारत के दक्षिण में महिलारोप्य नाम का एक नगर था, जहाँ अमरशक्ति नमक राजा राज्य करता था। अमरशक्ति के तीन पुत्र थे, बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति। राजा अमरशक्ति नीतिशास्त्र में जितने निपुण थे उनके पुत्र उतने ही बड़े महामूर्ख थे। पढाई-लिखाई में उनका मन बिलकुल भी नहीं लगता था, और इससे राजा अमरशक्ति तो अत्यंत चिंता हो रही थी। एक दिन अपनी इसी चिंता को राजा ने अपने समस्त मंत्रिमंडल के सामने रखा और उनसे परामर्श माँगा। राजा ने अपने मंत्रियों से कहा,"मेरे पुत्र किसी भी प्रकार की पढाई-लिखाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाते और इसी कारणवश उनको शास्त्रों का जरा भी ज्ञान नहीं है। इनको ऐसे देखकर मुझे इनके साथ-साथ हमारे राज्य की चिंता लगी रहती है। आप लोग कृपा करके इस समस्या का कुछ समाधान बताएं।"

सभा में उपस्थित एक मंत्री ने कहा,"राजा! पहले बारह वर्षों तक व्याकरण पढ़ी जाती है; उसके बाद मनु का धर्मशास्त्र, चाणक्य का अर्थशास्त्र और फिर वात्स्यायन का कामशास्त्र पढ़े जाते है। तब जाकर ज्ञान की प्राप्ति होती है।" मंत्री की बात सुनकर राजा ने कहा,"मानव जीवन बड़ा ही अनिश्चित है और इस प्रकार समस्त शास्त्रों को तो पढ़ने में वर्षों निकल जायेंगे। इस सरे ज्ञान को अर्जित करने का कोई आसान उपाय बताइये।" तभी सभा में उपस्थित सुमति नाम का मंत्री बोला,"यहाँ समस्त शास्त्रों में विद्वान और विद्यार्थियों में प्रिय विष्णुशर्मा नमक एक आचार्य रहता है। आप अपने पुत्रों को उसे सौंप दे। वो अवश्य ही आपके पुत्रों को कम समय में समस्त शास्त्रों में ज्ञानी बना देगा।"

सुमति की ऐसी बात सुनकर राजा ने तुरंत ही विष्णुशर्मा को अपनी सभा में बुलाकर कहा,"आचार्य! आप मुझ पर कृपा करें और मेरे इन पुत्रों को जल्दी ही नीतिशास्त्र का ज्ञान प्रदान करें। आपने अगर ऐसा कर दिया तो मैं आपको १०० ग्राम पुरस्कार स्वरुप भेंट करूँगा।" राजा की बात सुनकर विष्णुशर्मा बोले,"राजन! मुझ ब्राह्मण को १०० ग्रामों का क्या लोभ, मुझे आपका पुरस्कार नहीं चाहिए। मैं आपके पुत्रों को अवश्य ही शिक्षा प्रदान करूँगा और अगले ६ महीने में उन्हें नीतिशास्त्र में निपुण कर दूंगा। यदि मैं ऐसा नहीं कर सका तो आप मुझे उचित दंड दे सकते हैं।" विष्णुशर्मा की प्रतिज्ञा सुनकर समस्त मंत्रीगण और राजा बहुत खुश हुए और तीनो राजपुत्रों को उन्हें सौंपकर निश्चिन्त होकर राजकार्य में लग गए।

विष्णुशर्मा तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम लेकर आये और जीव-जंतुओं की कहानियों में माध्यम से उनको शिक्षा देने लगे। विष्णुशर्मा ने इन कहानियों को पाँच भागों में बांटा जो कुछ इस प्रकार हैं, पहला भाग मित्रभेद अर्थात मित्रों में मनमुटाव या अलगाव, दूसरा भाग मित्रसम्प्राप्ति यानि मित्र प्राप्ति और उसके लाभ, तीसरा भाग काकोलूकीया मतलब कौवे और उल्लुओं की कथाएं, चौथा भाग लब्ध्प्रणाश मतलब जान पे बन आने पर क्या करें और पांचवां भाग अपरीक्षितकारक अर्थात जिसके विषय में जानकारी ना हो तो हड़बड़ी में कदम ना उठायें। इन्ही नैतिक कहानियों के द्वारा विष्णुशर्मा ने तीनों राजकुमारों को ६ महीने में ही नीतिशास्त्र में विद्वान बना दिया। 

मनोविज्ञान, व्यवहारिकता और राजकाज की सीख देती इन कहानियों के संकलन को पंचतंत्र कहते हैं और इन कहानियों के माध्यम से बच्चों को बड़े ही रोचक तरीके से ज्ञान की बातें सिखाई जा सकती हैं। सूत्रधार की इस कड़ी में हम बच्चों को ध्यान में रखते हुए पंचतंत्र की इन्ही कहानियों को प्रस्तुत करेंगे।

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सन्यासी और चूहा (The Saint and the Rat)

सन्यासी और चूहा (The Saint and the Rat)

भारत के दक्षिण में स्थित महिलारोप्य नामक नगर के बाहर भगवान् शंकर का एक मठ था, जहाँ ताम्रचूड़ नामक सन्...

लोभी सियार (Covetous jackal)

लोभी सियार (Covetous jackal)

अर्थात् जिसके भाग्य में जितना लिखा होता है उसे उतना ही मिलता है, देखो कैसे अकेले बैल के मारे जाने की ...

“जुलाहे का धन” | Weaver's Wealth

“जुलाहे का धन” | Weaver's Wealth

एक नगर में रहने वाला सोमिलक नामक जुलाहा एक उच्चकोटि का कलाकार था। वह राजाओं के लिए अच्छे वस्त्र बुनता...

लालची गीदड़ | The greedy jackal

लालची गीदड़ | The greedy jackal

एक बार एक शिकारी घने जंगल में शिकार करने गया। तभी उसकी नज़र एक काले रंग के मोटे जंगली सूअर पर पड़ी। शिक...

ब्राह्मणी और काले तिल | Brahmini and black sesame

ब्राह्मणी और काले तिल | Brahmini and black sesame

नाकस्माच्छाण्डिली मातर्विक्रीणाति तिलैस्तिलान्। लुञ्चितानितरैर्येन हेतुरत्र भविष्यति॥   अर्थात् यदि श...

कबूतर और बहेलिया | Pigeons and the Hunter

कबूतर और बहेलिया | Pigeons and the Hunter

सर्वेषामेव मत्त्याँनां व्यसने समुपस्थिते।  वाङ्मात्रेणापि साहाय्यं मित्रादन्यो ना सन्दधे॥   अर्थात् स...

मूर्ख बंदर और राजा

मूर्ख बंदर और राजा

मूर्ख बंदर और राजा किसी राजा का एक भक्त और विश्वासपात्र एक बंदर था। राजा ने उस बंदर को अपना अंगरक्षक ...

जीर्णधन बनिये की तराजू

जीर्णधन बनिये की तराजू

किसी नगर में जीर्णधन नामक एक व्यापारी रहता था। धन खत्म हो जाने पर उसने दूर देश व्यापार के लिए जाने की...

मूर्ख बगुला और केकड़ा

मूर्ख बगुला और केकड़ा

मूर्ख बगुला और केकड़ा किसी जंगल में एक पेड़ पर बहुत सारे बगुले रहते थे। उसी पेड़ के कोटर में एक काला भया...

धर्मबुद्धि और पापबुद्धि

धर्मबुद्धि और पापबुद्धि

धर्मबुद्धि और पापबुद्धि किसी गाँव में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे। एक दिन पापबुद्...

मूर्ख बंदर और सूचीमुख पक्षी

मूर्ख बंदर और सूचीमुख पक्षी

मूर्ख बंदर और सूचीमुख पक्षी नानाम्यं नमतजे दारु नाश्मनि स्यात्क्षुरक्रिया । सूचीमुखं विजानीहि नाशिष्य...

गौरैया और मतवाला हाथी

गौरैया और मतवाला हाथी

  चटकाकाष्ठकूटेन मक्षिकादर्दुरैस्तथा । महाजनविरोधेन कुञ्जरः प्रलयं गतः ॥ कठफोड़वा, गौरैया, मेढक तथा मक...

घमंडी मछली

घमंडी मछली

किसी तालाब में तीन मछलियाँ अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य रहती थीं। एक दिन उस तालाब को दे...

दुर्बुद्धि कछुआ और हंस

दुर्बुद्धि कछुआ और हंस

किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। उसके संकट-विकट नाम के दो हंस परम स्नेही मित्र थे। एक ...

टिटिहरी और अहंकारी समुद्र

टिटिहरी और अहंकारी समुद्र

किसी समुद्र के तट में एक टिटिहरी पक्षियों का एक जोड़ा रहता था। जब मादा टिटिहरी के अंडे देने का समय आया...

सिंह और ऊंट

सिंह और ऊंट

किसी जंगल में मदोत्कट नाम का एक सिंह रहता था। उसके सेवक गैंडा, कौवा और गीदड़ थे। एक दिन उन्होंने जंगल ...

रंगा सियार

रंगा सियार

किसी जंगल में चंडरव नामक एक सियार रहता था। वह एक बार भूख से व्याकुल होकर खाने की खोज में किसी नगर में...

सिंह और चतुर खरगोश

सिंह और चतुर खरगोश

किसी जंगल में भासुरक नाम का एक सिंह रहता था। वह बलवान होने के कारण रोज अनेक हिरण, खरगोश आदि जानवरों क...

धूर्त बगुला

धूर्त बगुला

किसी जंगल में अनेक जल-जन्तुओं से भरा एक तालाब था। वहाँ रहने वाला एक बगुला बूढ़ा हो जाने के कारण मछलिया...

कौआ और सोने का हार

कौआ और सोने का हार

किसी स्थान में एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। वहाँ एक कौआ और कौवी रहते थे। कौवी जब भी अंडे देती पेड़ के न...