किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। उसके संकट-विकट नाम के दो हंस परम स्नेही मित्र थे। एक बार वहाँ लंबे समय तक वर्षा नहीं होने के कारण, तालाब धीरे-धीरे सूखने लगा। एक दिन तीनों इसी विषय में आपस में बात कर रहे थे। कछुए ने कहा, “मित्रों! जल के अभाव में हमारा जीवन नहीं बचेगा। हमें अपनी जान बचाने का कुछ उपाय सोचना पड़ेगा।“
हंसों ने कहा, “यहाँ से थोड़ी दूर पर एक दूसरा बड़ा तालाब है, जिसमें पानी भरा हुआ है। हम सबको वहीं चलना चाहिए।“
इस पर कछुए ने कहा, “तुम दोनों कहीं से एक लकड़ी लेकर आओ। तुम दोनों उस लकड़ी को अपने पंजों से पकड़कर उड़ना और मैं उसे अपने दांतों से पकड़कर लटक जाऊँगा।“
हंस बोले, “हम ऐसा ही करते हैं, लेकिन हवा में उड़ते समय तुम किसी भी हालत में अपना मुँह मत खोलना। अगर तुमने अपना मुँह खोला तो तुम नीचे गिरकर मर जाओगे।“
इस प्रकार दोनों हंस एक लकड़ी में कछुए को लटकाकर उड़ चले। रास्ते में एक गाँव आया। गाँव वाले दोनों हंसों को इस प्रकार उड़ता हुआ देखकर आश्चर्य-चकित होकर कहने लगे, “अहो! देखो ये पक्षी क्या चक्र जैसी वस्तु लेकर उड़े जा रहे हैं।“
उनकी बात सुनकर कछुए से रहा नहीं गया और वो बोला, “ये चक्र जैसी वस्तु मैं हूँ, कम्बुग्रीव।“
कछुए के इस प्रकार मुँह खोलते ही वो नीचे गिर गया और इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
इसीलिए कहते हैं कि हितकारी लोगों की बात माननी चाहिए।