धूर्त बगुला

धूर्त बगुला

किसी जंगल में अनेक जल-जन्तुओं से भरा एक तालाब था। वहाँ रहने वाला एक बगुला बूढ़ा हो जाने के कारण मछलियाँ पकड़ने में असमर्थ हो गया था। भूख से व्याकुल हो जाने के कारण वह नदी के किनारे बैठा आँसू बहाकर रो रहा था। समय एक केकड़े ने उसे रोता देखकर उत्सुकता और सहानुभूति के साथ पूछा, “मामा! आज तुम अपने भोजन की खोज छोड़कर यहाँ बैठे आँसू क्यों बहा रहे हो?” बगुला बोला, “तुम सही कह रहे हो। मछलियों को खाने से मुझे वैराग्य हो गया है। अब मैं आमरण व्रत ले लिया है।“ केकड़े ने कहा, “मामा! तुम्हारे इस वैराग्य का कारण क्या है?” बगुले ने उत्तर दिया, ”मैं इसी तालाब में पैदा हुआ और यहीं बूढ़ा हुआ। परंतु आज ही मैंने सुन है कि अगले बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होगी। इस कारण अब यह तालाब सूख जाएगा और इसमें रहने वाले सभी प्राणी मृत्यु को प्राप्त होंगे। बस इसी दुःख से मैं दुखी हूँ।“ केकड़े ने तालाब में रहने वाले और भी जंतुओं को बगुले की कही हुई बात बताई। डर से व्याकुल होकर सभी प्राणी उस बगुले के पास आए और एक स्वर में बोले, “मामा! क्या हमारे बचने का कोई उपाय है?” बगुला बोला, “इस तालाब से थोड़ी ही दूर पर एक बहुत बड़ा तालाब है। उसमें इतना पानी है कि बारह वर्ष तो क्या चौबीस वर्षों तक भी अगर वर्षा ना हो तो भी नहीं सूखेगा। अगर तुम लोग चाहो तो मैं एक-एक कर तुम सभी तो उस तालाब में ले जाकर छोड़ देता हूँ।“ इस प्रकार बगुला रोज कुछ मछलियाँ तालाब से ले जाता और उनको एक चट्टान में ले जाकर खा लेता। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा और बगुले बिना किसी प्रयास के भर पेट भोजन मिलने लगा। एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा, “मामा! मेरी बात आपसे सबसे पहले हुई थी और अभी तक आपने मुझे उस बड़े तालाब में नहीं छोड़ा। आप कृपा करके मेरे प्राणों की भी रक्षा करें।“ दुष्ट बगुले ने सोचा, “रोज-रोज मछलियाँ खाकर मेरा भी मन भर गया है। आज इस केकड़े को ही खाता हूँ।“ ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बिठा लिया और चट्टान की ओर उड़ने लगा। केकड़े ने दूर से चट्टान पर मछलियों की हड्डियों का ढेर देखा तो डर गया और बगुले से बोला, “मामा! वह दूसरा तालाब कितनी दूर है? मुझे अपने ऊपर इतनी देर से बिठाकर तुम थक गए होगे।“ बगुले ने भी सोचा यह जल में रहने वाला केकड़ा यहाँ मेरा क्या बिगाड़ लेगा और बोला, “केकड़े! दूसरा कोई तालाब नहीं है। यह तो मैंने मेरे भोजन का प्रबन्ध किया है। आज तू भी मेरा भोजन बनेगा।“ उसके ऐसा कहने पर केकड़े ने अपने दांतों से उसकी गर्दन जकड़ ली, जिससे वह दुष्ट बगुला मर गया। बगुले के मर जाने के बाद केकड़ा धीरे-धीरे तालाब वापस पहुंचा और सभी तो बगुले की धूर्तता के विषय में बताया। इसीलिए कहते हैं कि कभी भी चपलतावश अधिक नहीं बोलना चाहिए।

किसी जंगल में अनेक जल-जन्तुओं से भरा एक तालाब था। वहाँ रहने वाला एक बगुला बूढ़ा हो जाने के कारण मछलियाँ पकड़ने में असमर्थ हो गया था। भूख से व्याकुल हो जाने के कारण वह नदी के किनारे बैठा आँसू बहाकर रो रहा था। समय एक केकड़े ने उसे रोता देखकर उत्सुकता और सहानुभूति के साथ पूछा, “मामा! आज तुम अपने भोजन की खोज छोड़कर यहाँ बैठे आँसू क्यों बहा रहे हो?”

बगुला बोला, “तुम सही कह रहे हो। मछलियों को खाने से मुझे वैराग्य हो गया है। अब मैं आमरण व्रत ले लिया है।“ केकड़े ने कहा, “मामा! तुम्हारे इस वैराग्य का कारण क्या है?” 

बगुले ने उत्तर दिया, ”मैं इसी तालाब में पैदा हुआ और यहीं बूढ़ा हुआ। परंतु आज ही मैंने सुन है कि अगले बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होगी। इस कारण अब यह तालाब सूख जाएगा और इसमें रहने वाले सभी प्राणी मृत्यु को प्राप्त होंगे। बस इसी दुःख से मैं दुखी हूँ।“

केकड़े ने तालाब में रहने वाले और भी जंतुओं को बगुले की कही हुई बात बताई। डर से व्याकुल होकर सभी प्राणी उस बगुले के पास आए और एक स्वर में बोले, “मामा! क्या हमारे बचने का कोई उपाय है?” बगुला बोला, “इस तालाब से थोड़ी ही दूर पर एक बहुत बड़ा तालाब है। उसमें इतना पानी है कि बारह वर्ष तो क्या चौबीस वर्षों तक भी अगर वर्षा ना हो तो भी नहीं सूखेगा। अगर तुम लोग चाहो तो मैं एक-एक कर तुम सभी तो उस तालाब में ले जाकर छोड़ देता हूँ।“ 

इस प्रकार बगुला रोज कुछ मछलियाँ तालाब से ले जाता और उनको एक चट्टान में ले जाकर खा लेता। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा और बगुले बिना किसी प्रयास के भर पेट भोजन मिलने लगा। 

एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा, “मामा! मेरी बात आपसे सबसे पहले हुई थी और अभी तक आपने मुझे उस बड़े तालाब में नहीं छोड़ा। आप कृपा करके मेरे प्राणों की भी रक्षा करें।“

दुष्ट बगुले ने सोचा, “रोज-रोज मछलियाँ खाकर मेरा भी मन भर गया है। आज इस केकड़े को ही खाता हूँ।“ ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बिठा लिया और चट्टान की ओर उड़ने लगा। 

केकड़े ने दूर से चट्टान पर मछलियों की हड्डियों का ढेर देखा तो डर गया और बगुले से बोला, “मामा! वह दूसरा तालाब कितनी दूर है? मुझे अपने ऊपर इतनी देर से बिठाकर तुम थक गए होगे।“

बगुले ने भी सोचा यह जल में रहने वाला केकड़ा यहाँ मेरा क्या बिगाड़ लेगा और बोला, “केकड़े! दूसरा कोई तालाब नहीं है। यह तो मैंने मेरे भोजन का प्रबन्ध किया है। आज तू भी मेरा भोजन बनेगा।“ 

उसके ऐसा कहने पर केकड़े ने अपने दांतों से उसकी गर्दन जकड़ ली, जिससे वह दुष्ट बगुला मर गया। 

बगुले के मर जाने के बाद केकड़ा धीरे-धीरे तालाब वापस पहुंचा और सभी तो बगुले की धूर्तता के विषय में बताया। 

इसीलिए कहते हैं कि कभी भी चपलतावश अधिक नहीं बोलना चाहिए।