सिंह और चतुर खरगोश

सिंह और चतुर खरगोश

किसी जंगल में भासुरक नाम का एक सिंह रहता था। वह बलवान होने के कारण रोज अनेक हिरण, खरगोश आदि जानवरों को मारकर भी शान्त नहीं होता था। एक दिन उस जंगल के सारे जीव मिलकर उसके पास गए और बोले, “स्वामी! इन सारे जीवों को मारने से क्या लाभ? आपकी तृप्ति तो एक हिरण से ही हो जाती है। इसलिए आप हमारे साथ संधि कर लीजिये। आज से घर बैठे आपके पास क्रम से रोज एक जीव खाने के लिए पहुँच जाया करेगा। ऐसा करने से आपकी जीविका भी बिना कष्ट के चलेगी और हमारा नाश भी नहीं होगा।“ उनकी बात सुनकर भासुरक बोला, “ये तुमने ठीक कहा। परंतु याद रहे अगर किसी दिन मेरे पास खाने के लिए एक जीव नहीं आया तो मैं सबको खा जाऊँगा।“ सभी जानवरों ने “ऐसा ही होगा” कहकर वहाँ से विदा ली और उसके बाद बिना भय के जंगल में रहने लगे। रोज दोपहर को एक जीव सिंह के पास पहुँच जाता था। एक दिन सिंह के पास जाने का क्रम खरगोश का था। खरगोश अपनी मृत्यु के डर से धीरे-धीरे चलते हुए किसी तरह सिंह को मारकर अपनी जान बचाने के उपाय सोचने लगा। रास्ते में उसे एक कुआं दिखा। उसने झाँककर देखा तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी। इससे खरगोश को सिंह से छुटकारा पाने का एक उपाय सूझा। खरगोश धीरे-धीरे चलता हुआ शाम के समय सिंह के पास पहुंचा। भासुरक भूख से व्याकुल हो रहा था और छोटे से खरगोश को देखकर उसका क्रोध और भी बढ़ गया और उसने खरगोश से कहा, “अरे नीच! एक तो इतने छोटे हो और दूसरे इतनी देरी से आये हो। इस अपराध के लिए मैं तुमको खाने के बाद सुबह सभी हिरणों को मारकर इसका दंड दूंगा।“ खरगोश ने दबी हुई आवाज में कहा, “स्वामी! इसमें न मेरा अपराध है और न ही बाकी जानवरों का।“

किसी जंगल में भासुरक नाम का एक सिंह रहता था। वह बलवान होने के कारण रोज अनेक हिरण, खरगोश आदि जानवरों को मारकर भी शान्त नहीं होता था। एक दिन उस जंगल के सारे जीव मिलकर उसके पास गए और बोले, “स्वामी! इन सारे जीवों को मारने से क्या लाभ? आपकी तृप्ति तो एक हिरण से ही हो जाती है। इसलिए आप हमारे साथ संधि कर लीजिये। आज से घर बैठे आपके पास क्रम से रोज एक जीव खाने के लिए पहुँच जाया करेगा। ऐसा करने से आपकी जीविका भी बिना कष्ट के चलेगी और हमारा नाश भी नहीं होगा।“

उनकी बात सुनकर भासुरक बोला, “ये तुमने ठीक कहा। परंतु याद रहे अगर किसी दिन मेरे पास खाने के लिए एक जीव नहीं आया तो मैं सबको खा जाऊँगा।“ सभी जानवरों ने “ऐसा ही होगा” कहकर वहाँ से विदा ली और उसके बाद बिना भय के जंगल में रहने लगे। रोज दोपहर को एक जीव सिंह के पास पहुँच जाता था। 

एक दिन सिंह के पास जाने का क्रम खरगोश का था। खरगोश अपनी मृत्यु के डर से धीरे-धीरे चलते हुए किसी तरह सिंह को मारकर अपनी जान बचाने के उपाय सोचने लगा। रास्ते में उसे एक कुआं दिखा। उसने झाँककर देखा तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी। इससे खरगोश को सिंह से छुटकारा पाने का एक उपाय सूझा। 

खरगोश धीरे-धीरे चलता हुआ शाम के समय सिंह के पास पहुंचा। भासुरक भूख से व्याकुल हो रहा था और छोटे से खरगोश को देखकर उसका क्रोध और भी बढ़ गया और उसने खरगोश से कहा, “अरे नीच! एक तो इतने छोटे हो और दूसरे इतनी देरी से आये हो। इस अपराध के लिए मैं तुमको खाने के बाद सुबह सभी हिरणों को मारकर इसका दंड दूंगा।“ 

खरगोश ने दबी हुई आवाज में कहा, “स्वामी! इसमें न मेरा अपराध है और न ही बाकी जानवरों का।“