सर्वेषामेव मत्त्याँनां व्यसने समुपस्थिते।
वाङ्मात्रेणापि साहाय्यं मित्रादन्यो ना सन्दधे॥
अर्थात् संकट के समय मौखिक आश्वासन भी केवल मित्र से ही मिल सकता है, जैसे सिर्फ़ चित्रग्रीव के कहने मात्र से हिरण्यक ने अपने मित्र की मदद कर दी थी।
एक वन में एक बरगद के पेड़ के सहारे कई पक्षी और जानवर रहते थे। उसी बरगद पर लघुपतनक नाम का एक कौआ भी रहता था। एक दिन वो जैसे ही भोजन की खोज में निकला तो उसने हाथ में जाल लिये एक शिकारी को उस बरगद की ओर आते देखा। वह सोचने लगा कि यह दुष्ट तो मेरे साथी पक्षियों को अपना शिकार बनाने यहाँ आया है। मैं सभी को सावधान कर देता हूँ।
यह सोचकर वह वापस लौट आया और अपने सभी साथियों को इकट्ठा करके उन्हें बताने लगा- “बहेलिया अपना जाल फैलाकर यहाँ पर चावल बिखेरेगा और जो भी उन चावलों का लालच करेगा, वह जाल में अवश्य ही फँस जाएगा। इसलिए कोई भी चावलों के पास नहीं जाएगा।”
कुछ ही देर बाद, बहेलिये ने अपना जाल बिछाकर चावल फैला दिए और वह छिपकर एक ओर बैठ गया। ठीक इसी समय अपने परिवार के सदस्यों के साथ भोजन की खोज में निकले चित्रग्रीव नामक कबूतर ने जब उन चावलों को देखा, तो उसे लालच हो आया। कौए ने चित्रग्रीव को रोकना चाहा, लेकिन चित्रग्रीव ने कौए की एक ना सुनी और चावलों को खाने के चक्कर में पूरे परिवार के साथ जाल में फँस गया।
बहेलिया कबूतरों को अपने जाल में फँसा देखकर प्रसन्न होकर उन्हें पकड़ने के लिए उनकी ओर चला। लेकिन बहेलिए को अपनी ओर आता देखकर कबूतरों के मुखिया ने अपने परिजनों को समझाते हुए कहा -
“तुम सब इस जाल को लेकर थोड़ी दूर तक उड़ चलो, तब तक मैं इस जाल से मुक्त होने का कोई उपाय सोचता हूँ। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो बहेलिए के हाथों में पड़कर अवश्य मारे जाओगे।”
अपने मुखिया की बात मानकर सभी कबूतरों ने एक साथ अपने पंख फड़फड़ाए और जाल को साथ लेकर उड़ने लगे। कबूतरों को जाल के साथ उड़ता देख, बहेलिया उनके पीछे भागा और कहने लगा, “कब तक एक साथ उड़ पाओगे कुछ देर में ही तुम सब आपस में लड़ने लगोगे और नीचे गिर जाओगे।”
पर कबूतर एक साथ उड़ते रहे और देखते ही देखते आसमान में ऊँचे उड़ गए। दुःखी हुआ बहेलिया अपने भाग्य को कोसता हुआ लौट गया।