डेटा प्रोटकेशन बिल 11 दिसंबर को लोकसभा में पेश हुआ. यह बिल सरकार को फेसबुक, गूगल समेत कई कंपनियों से कॉन्फिडेंशियल प्राइवेट डेटा और गैर-निजी डेटा के बारे में पूछने का अधिकार देता है. इस बिल का कांग्रेस और तृणमूल ने सख्ती से विरोध किया और इसे नागरिकों के 'मूलभूत अधिकारों का हनन' बताया. दोनों दलों ने इस बिल को जॉइंट पार्लिअमेंट्री कमिटी में भेजे जाने की मांग की है. जो इसका विरोध कर रहें हैं वो इसे प्राइवेसी के लिए खतरा बता रहे हैं. अब ये खतरा क्या है ये समझने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ये डेटा क्या है? ये किस तरह कैटेगराइज किया जाता है ? बिग स्टोरी पॉडकास्ट में ये सब समझा रहे हैं क्विंट के टेक एंड ऑटो स्पेशल कोरेस्पोंडेंट साइरस जॉन.
इस के अलावा सुनिए इंटरनेट फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता की क्विंट के साथ से ख़ास बात चीत जिसमें वप बता रहे हैं कि कानून के दायरे से ये बिल कितना बाहर है. और साथ ही इस पॉडकास्ट में सुनिए द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया को जो बता रहे हैं कि पर्सनल डेटा के स्टोरेज के मामले में सरकार इस बिल के जरिए प्राइवेट कंपनियों पर तो लगाम लगा रही है. लेकिन खुद बेलगाम हो जाना चाहती है.
सुपरवाइजिंग एडिटर - अभय सिंह
सुपरवाइजिंग एडिटर - अभय सिंह