Hamare Barah | Short Review | Sajeev Sarathie
हम दो हमारे बारह एक महत्वपूर्ण विषय पर बनी एक संजीदा सी फिल्म है, पर फिल्म के मेकर्स ने सोचा कि इसे थोड़ा विवादित बना कर पेश किया जाए। एक बहुत ही खराब और विवादों से भरा ट्रेलर बनाकर फिल्म को इंट्रोड्यूस किया गया और जिस समुदाय के लिए इसे बनाया गया था, उसे ही इस फिल्म से दूर कर दिया गया।
फिल्म मुस्लिम समुदाय में कुछ विषयों को लेकर, देखी जाती, एक तरह के धार्मिक कट्टरपन को आधार बनाती है जिसके कारण वो बदलते सामाजिक परिवेश में भी खुद को बदलने से इंकार कर देते हैं। कहानी एक मुस्लिम लड़की की है जो अपने अब्बू के खिलाफ केस कर देती है। अब्बू जो कि पेशे से कव्वाल हैं बच्चों को अल्लाह की मेहरबानी समझ 60 साल की उम्र में भी अपनी जवान बीबी से बच्चे की उम्मीद कर रहे है ये जानते हुए भी कि इस डिलीवरी से उनकी पत्नी की जान तक जा सकती है। केस में पक्ष, प्रतिपक्ष दोनों के वकील भी मुस्लिम हैं, तो लड़ाई मुस्लिम धर्म ग्रंथ की बातों को नए जमाने के संदर्भ में न अपनाकर रूढ़िवादिता में जकड़े रहने के खिलाफ है जो ढेरों मुस्लिम औरतों का दर्द बयां करती है। मगर सस्ती लोकप्रियता के लालच ने इस फिल्म को डूबो दिया।
फिल्म अच्छी लिखी गई है। अन्नू कपूर, मनोज जोशी, राहुल बग्गा, अदिति बटपहरी और इशलीन प्रसाद का काम तो अच्छा है ही, अल्फिया की वकील बनी अश्विनी कलसेकर और बड़े बेटे बने परितोष त्रिपाठी सबसे ज्यादा इंप्रेसिव लगे हैं। अश्वनी तो खैर एक परिपक्व अभिनेत्री हैं ही, पर परितोष पिता और पत्नी, कट्टरपन और उदारवादिता के बीच फंसे निसहाय से पुरुष की भूमिका में बेहद प्रभावी लगे हैं। अन्नू कपूर अभिनेता के रूप में ही नहीं बतौर गायक संगीतकार भी जलवे बिखेर रहे हैं। हमारे बारह बुरी फिल्म नहीं है। यकीनन देखी जा सकती है।
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