विरले ही होते हैं वो कलाकार जो खुद को किसी खांचे में सीमित नहीं रखते। जो रोज अपनी कला के नए आयाम तलाशते हैं। उनकी कोशिशों को नकारने वाले अक्सर वही लोग होते हैं जो या तो खुद अपने दायरों को तोडना नहीं चाहते या फिर उनमें वो काबिलियत ही नहीं होती।
खैर आज बात शुभा मुदगल जी की, जिन्हें नई चुनौतियां हमेशा आकर्षित करती है। कौन कल्पना कर सकता है शास्त्रीय गायन की गहराइयों को नापने वाली आवाज कभी किसी हार्ड रॉक गीत को भी इतने माधुर्य के साथ परफॉर्म कर पाएगी। 90 के दशक का गीत अब के सावन के बनने की दिलचस्प कहानी लीजिए सुनिए खुद शुभा जी जुबानी। उनकी साथ हुई इस मुलाकात को मैं अपने जीवन की एक बड़ी उपलब्धि मानता हूं। ऐसे गुणी कलाकारों से मिलकर आप धन्य हो जाते हैं।
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