पुरुषार्थ और प्रारब्ध

पुरुषार्थ और प्रारब्ध

पितामह भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं पुरुषार्थ अर्थात् कर्म और प्रारब्ध अर्थात् भाग्य में सदा पुरुषार्थ के लिये प्रयास करना। पुरुषार्थ के बिना केवल प्रारब्ध राजाओं के कार्य नहीं सिद्ध कर सकता। कार्य की सिद्धि में प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों का योगदान होता है, परंतु मैं पुरुषार्थ को ही श्रेष्ठ मानता हूँ क्योंकि प्रारब्ध तो पहले से ही निर्धारित होता है। विपन्ने च समारम्भे संतापं मा स्म वै कृथाः। घटस्वैव सदाऽऽत्मानं राज्ञामेष परो नयः।। अर्थात् यदि आरम्भ किया हुआ कार्य पूरा न हो सके अथवा उसमें बाधा पड़ जाए तो इसके लिये अपने मन में दुःख नहीं मानना चाहिये। तुम सदा अपने कर्म पर ध्यान दो, यही राजाओं के लिये उत्तम नीति है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices

पितामह भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं पुरुषार्थ अर्थात् कर्म और प्रारब्ध अर्थात् भाग्य में सदा पुरुषार्थ के लिये प्रयास करना। पुरुषार्थ के बिना केवल प्रारब्ध राजाओं के कार्य नहीं सिद्ध कर सकता। कार्य की सिद्धि में प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों का योगदान होता है, परंतु मैं पुरुषार्थ को ही श्रेष्ठ मानता हूँ क्योंकि प्रारब्ध तो पहले से ही निर्धारित होता है। 

 

विपन्ने च समारम्भे संतापं मा स्म वै कृथाः। 

घटस्वैव सदाऽऽत्मानं राज्ञामेष परो नयः।।

 

अर्थात् यदि आरम्भ किया हुआ कार्य पूरा न हो सके अथवा उसमें बाधा पड़ जाए तो इसके लिये अपने मन में दुःख नहीं मानना चाहिये। तुम सदा अपने कर्म पर ध्यान दो, यही राजाओं के लिये उत्तम नीति है। 

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