क्षमा और भय

क्षमा और भय

भीष्म पितामह के अनुसार राजा को सदा ही क्षमाशील नहीं बने रहना चाहिये, क्योंकि सदा क्षमाशील राजा कोमल स्वभाव वाले हाथी के समान होता है और भय के अभाव में अधर्म को बढ़ाने में सहायक होता है। इसी बात को लेकर देवगुरु बृहस्पति का यह श्लोक महत्वपूर्ण है, क्षममाणं नृपं नित्यं नीचः परिभवेज्जनः। हस्तियन्ता गजस्यैव शिर एवारुरुक्षति।। अर्थात् नीच मनुष्य क्षमाशील राजा का सदा उसी प्रकार तिरस्कार करते हैं, जैसे हाथी का महावत उसके सर पर ही चढ़े रहना चाहता है। इसीलिये राजा को न ही बहुत क्षमाशील होना चाहिये और न ही अत्यधिक दण्ड देना चाहिये। दोनों के बीच संयम बनाकर रखना ही कुशल राजा की पहचान है।

भीष्म पितामह के अनुसार राजा को सदा ही क्षमाशील नहीं बने रहना चाहिये, क्योंकि सदा क्षमाशील राजा कोमल स्वभाव वाले हाथी के समान होता है और भय के अभाव में अधर्म को बढ़ाने में सहायक होता है। इसी बात को लेकर देवगुरु बृहस्पति का यह श्लोक महत्वपूर्ण है,

 

क्षममाणं नृपं नित्यं नीचः परिभवेज्जनः। 

हस्तियन्ता गजस्यैव शिर एवारुरुक्षति।। 

 

अर्थात् नीच मनुष्य क्षमाशील राजा का सदा उसी प्रकार तिरस्कार करते हैं, जैसे हाथी का महावत उसके सर पर ही चढ़े रहना चाहता है। 

 

इसीलिये राजा को न ही बहुत क्षमाशील होना चाहिये और न ही अत्यधिक दण्ड देना चाहिये। दोनों के बीच संयम बनाकर रखना ही कुशल राजा की पहचान है।