घूंघट में चांद है पर कोई देख न ले...
बॉलीवुड में आज भी सार्थक फिल्में बनती है ये यकीन और पुख्ता हो जाता है जब आप लापता लेडीज जैसी सार्थक फिल्में देखते हैं। फिल्म का ट्रीटमेंट हालांकि कॉमिक है पर फिल्म बहुत से संवेदनशील विषयों को टच करती है विशेषकर देश के गांव देहातों में महिलाओं की अवस्था पर बहुत ही दमदार चोट करती है। निर्देशक किरण राव ने अपनी लेखक मंडली के साथ मिलकर एक बेहतरीन कहानी को बड़े ही दिलचस्प अंदाज में आप तक पहुंचाया है। संवाद बहुत ही चुटीले हैं छुपे हुए तीरों के साथ जो आपको गुदगुदाएंगे और सोचने पर भी मजबूर कर देंगे।
जमतारा से लाइम लाइट में आए स्पर्श श्रीवास्तव ने कमाल का काम किया है। एक दृश्य जिसमें को अंग्रेजी का प्रदर्शन करते हुए पूरा एफर्ट लगा कर आई लव यू बोलते हैं और बोलने के बाद जो एक्सप्रेशन देते हैं सच में गजब करते हैं। नितांशी गोयल ने अपने किरदार के ग्राफ को सुंदर तरीके से हैंडल किया है तो प्रतिभा रनता के किरदार के माध्यम से निर्देशक से कई जरूरी सवाल उठाए है। रवि किशन एक ऐसे भोजपुरी एक्टर हैं जिन्होंने अपने कंफर्ट जोन से बाहर आकर बार बार अपनी काबिलियत दिखाई है, यहां भी वो पूरी फिल्म की जान बने बैठे हैं विशेषकर क्लाइमैक्स में उनका काम देखते ही बनता है। इनके अलावा छाया कदम और दुर्गेश कुमार का काम भी बढ़िया है। इनफैक्ट पूरी कास्टिंग ही काफी अच्छी कही जा सकती है।
राम संपत को जब भी आमिर खान प्रोडक्शन के साथ काम करने के मौका मिला है उनका संगीत और भी निखरकर सामने आया है। लापता लेडीज हंसते हंसाते आपको उस वास्तविक भारत की मूलभूत समस्याओं से परिचित करवाती है जो हमारी सोच से जुड़ी हुई हैं और जिनके निवारण के बिना हमारी हर तरक्की अधूरी ही है। लापता लेडीज हम सबको अवश्य ही देखनी चाहिए।
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