अमर सिंह चमकीला जितने लोकप्रिय थे,अपने गीतों के "अश्लील" बोलों के लिए उतने ही बदनाम भी रहे। चमकीला जन साधारण के कवि थे, जो वही लिखते रहे, और उसी भाषा में लिखते रहे जिसमें वो पले बढ़े थे। जहां एक बड़ा जन समूह उनके इन गीतों से अनायास ही जुड़ जाता था वहीं कुछ लोगों को लगता था कि उनके गीत औरतों को गलत अंदाज में प्रस्तुत करते हैं और युवाओं के जेहन को भष्ठ कर रहे हैं।
इम्तियाज चमकीला को किसी हीरो की तरह पेश नहीं करते, बल्कि उन्हें उनकी सारी कमियों के साथ परदे पर उतारते हैं और हर कुछ सीन्स के बाद इनपर कटाक्ष करती कुछ लाइंस भी आ जाती है, फिर वो विरोध धर्म के ठेकेदारों से हो या फिर चमकीला के खुद के घर से। इस देश के लोक गीतों में पुरुष और स्त्री की सोच, काम वासना आदि को लेकर हमेशा ही छेड़ छाड़ भरे अंदाज के चुटीले गीतों की परंपरा रही है जिन्हें औरतें भी चाव से गाती सुनती आई है। मैं बोतल शराब की हूं मुझे गट गट पी ले पर आपत्ति जताने वाले ड्राइंग रूम में बैठकर किसी अधनंगी मॉडल को सॉफ्ट ड्रिंक के विज्ञापन में बोतल की शेप में ढलते देख वाह वाह करते नहीं थकते। इम्तियाज समाज के इस दोगलेपन पर भी फिकरा कसते हैं।
उनकी फिल्मों की खासियत होती है कि फिल्म के नायक नायिका ही नहीं बल्कि हर छोटे से छोटा किरादार भी आपको याद रह जाता है, बेहतरीन स्टोरी प्रेजेंटेशन और संगीत तो होता ही है शानदार। इस फिल्म में ये सब है, दरअसल ये विंटेज इम्तियाज की वापसी है। इरशाद और रहमान की जोड़ी का यादगार संगीत, मैनू विदा करो, नरम कलेजा, तू क्या जाने जैसे बेमिसाल गीत, और उनका फिल्मांकन, दिलजीत और परिणीति की माइंड ब्लोइंग परफार्मेंस और इन सबको बखूबी समेटता इम्तियाज का निर्देशन, अमर सिंह चमकीला को एक कभी न भूलने वाला अनुभव बना देता है।
फिल्म के हर पक्ष पर बहुत कुछ बोलने का मन है पर फिलहाल संक्षेप में बस इतना ही कि बिना एक भी पल गंवाए देख डालिए इस फिल्म को नेटफ्लिक्स पर।
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