नर्म अल्फ़ाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं... - जावेद अख्तर
इंसान की फितरत का एक उसूल है हमारे भाव विचार, रिश्ते नाते, प्यार दोस्ती बोल चाल का लहजा, हमारे आदर्श सब को बस एक ही चीज़ ड्राइव करती है और वो है हमारा स्वार्थ. स्वार्थ ही हमें बताता है कि हम किस परिस्तिथि में कौन सा निर्णय लें।
आट्टम यानी खेला, या नाटक, मात्र सवा दो घंटे में ये मलयालम फिल्म आपको इंसानी फितरत के इतने रंग दिखा देती है कि आप भी मजबूर हो जाते हैं अपने गिरेबान में झाँकने के लिए.. फिल्म आनंद एकर्षी निर्देशित है और इतनी खूबी से कोस्ट कटिंग की है कि फिल्म का ९० प्रतिशत हिस्सा एक घर में शूट हुआ है. फिर भी हर कलाकार के संवाद उनकी सोच उनका व्यक्तित्व इतनी खूबी से उभर कर आया है कि दर्शक एक पल को भी यहाँ वहां झाँकने की हिमाकत नहीं कर पाते.
फिल्म का क्लाइमेक्स सबसे शानदार है. जहाँ कई मुखौटा धारी पुरुष फिल्म की एक एकमात्र नायिका ज़रीन शिहाब को घेरे खड़े हैं जिनमें से किसी एक ने उसके साथ कुछ गलत किया है. एक मुखौटा धारी खुद सामने आता है और अपना जुर्म कबूल करता है और नायिका से पूछता है कि क्या वो उसका चेहरा नहीं देखना चाहती, नायिका कहती है कि कोई फरक नहीं पड़ता मेरे लिए तुम और बाकी से ये 11 मर्द एक जैसे ही हो.
आट्टम वाकई एक क्लासिक फिल्म है, जिसमें ढेर सारे कलाकार हैं और मजे की बात है उनके रील नाम वही हैं फिल्म में जो की उनके रियल नाम है. प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही इस बेहतरीन फिल्म को आप अवश्य देखें। its a must watch.
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